ग़ज़ल

तोड़ कर बंदिशें ज़माने की हम तो जीते हैं,
यहाँ सब गैर हैं, गैरों से शिकायत नहीं करते.

हम हैं मेह्फूस इन्ही जंजीरों में वो कहेंगे,
अजी भेडिये कभी भेड़ों की हिफाज़त नहीं करते.

उनकी हमदर्दी मेरी मुहब्बत को रियायत थी,
जल्लाद हैं वो, आशिकों से रियायत नहीं करते.

उनके बहाने फ़र्ज़, मुकद्दर और खुदा की मर्ज़ी हैं,
सुना मैंने कि परवाने खुदा की इबादत नहीं करते.

ज़माने के सामने मेरी इज्ज़त भी छोटी पड़ी,
नाज़ुक है दिल ये, इसके साथ शरारत नहीं करते.

शुक्रिया
' अतुल '
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