ग़ज़ल : बात पुरानी हों गयी

जो पूंछते हैं आज वो तो बात पुरानी हों गयी.

एक बूँद को प्यासे सहरा में भी कोई खिलता है,
वो बूँद का प्यासा था, वो बूँद दीवानी हों गयी.

हमसे ही लड़ते थे सब, हम खुद ही से लड़ पड़े,
सबके आशियाने सजे, मेरी दुनिया वीरानी हों गयी.

उम्मीद ही एक थी जो तुमने छोड़ी थी मेरे लिए,
उसका लुटना भी अजी, एक और कहानी हों गयी.

जिस पर हम गिरे थे वो ठोकर भी उन्ही की थी,
जिनके थे मरहम, ज़ख्म भी उनकी निशानी हों गयी.

हर फूल के खिलने की एक उम्र अलग ही होती है,
वही बर्बाद था बचपन, वही बर्बाद जवानी हों गयी.

शुक्रिया

' अतुल '
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