शायर पर मुकद्दमा

गुस्ताख ये ज़िन्दगी है,
कि हर बच्चा मुकद्दमे की तारीख लेके पैदा होता है.
ज़माने की बंदगी है,
कि अदालत की छाँव में यहाँ कोई गुनाहगार पैदा होता है.


बोलते है सबूत और किताबें कानून की,
इंसान यहाँ खामोश हों जाते हैं.
मिटटी की आँखों में यहाँ,
आंसूं सभी एहसान फरामोश हों जाते हैं.


चेहरे पर हँसी होती है,
अन्दर दिल में तूफ़ान होता है.
उसूलों पर इलज़ाम की जंजीरें होती हैं,
हर मुसाफिर यहाँ परेशान होता है.


शक है किसी के ईमान पर,
इल्जामों पर उसके मशाल है.
अँधेरे में जुबां पर सच है,
पर सच की हकीकत पर सवाल है.


कुछ सज़ा देंगे और कुछ  
मेरे दामन पर दाग यूँ देंगे.
कि मेरी मय्यत में आकार  भी,
मेरी मौत का सबूत पूंछेंगे.


मुसाफिर कई होंगे जो अँधेरे से हारकर,
दिलों की शम्मा बुझायेंगे.
ज़मानत की कीमत है इतनी,
कि जान देकर भी चूका न पायेंगे.


पर ये मुसाफिर कोई और होगा,
मिटकर भी ईमान से बढ़कर उसका निशाना क्या होगा.
आये गए दीवाने कई पर,
बिना जले कोई दीवाना परवाना क्या होगा.
परवाने से बढ़कर कोई यहाँ दीवाना क्या होगा.




नए साल की बहुत सारी शुभकामनाएं.


' अतुल '
5 Responses


  1. nisha Says:

    jaisa pehle padha tha, usse bhi achha.


  2. Dev Says:

    शब्दों और भावों की नयनाभिराम प्रविष्टि अत्यंत सराहनीय है



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