खैर

हर बार मुझे वोह अपनों में गैर करते हैं,
खूब है दीवाने जलते हैं बेवफा खैर करते हैं |

सम्हाल के रखते हैं कदम वोह मेरे सामने,
और हर शब् ख्वाबों में मेरे सैर करते करते हैं |

कई तमन्नाएं बनीं नासूर मेरे सीने में,
वो मेरी हर अदा से क्यूँ भला बैर करते हैं |

झोंक कर अंगारों में मुहब्बत के चिराग,
ज़िन्दगी के आशियाने की हम खैर करते हैं |

' अतुल '

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