होश

होश आ ले तो सम्हल जायेंगे,
लोग बिछड़ेंगे नहीं बदल जायेंगे |

वक़्त हमको इतना तो सिखा देगा,
ठोकर आज की हम कल खायेंगे |

याद आएंगे हम किसी बहाने से,
किसी बहाने आंच देना जल जेयेंगे |

मेरी बेहयाई मेरी ताकत नहीं है,
मिलेंगी जो नज़रें तो गल जायेंगे |

दिल में बसा के रखने का क्या फायदा,
हम जो ज़िन्दगी से निकल जायेंगे|

' अतुल '



कव्वाली : छुपा रक्खा है

बहुत समय से शायरी नहीं कर पा रहा था | इस बार एक कव्वाली पेश कर रहा हूँ | किसी शायर की बेपनाह मुहब्बत का पैग़ाम है जो अभी तक दिल के किसी कोने मैं छुपा है | एक परिंदे की आज़ाद होने की जिरह को शब्दों में पिरो के इस तरह पेश करने का इरादा है कि मानो मुहब्बत दिल के पिंजरे को तोड़ कर आज़ाद उड़ना चाहती हो | बहुत वक़्त बाद लिख रहा हूँ| वैसे तो शायरी को जंग नहीं लगती पर खास के कोई बुनियादी गलती हो तो मुआफ़ कीजिएगा| लिखा है ...


मैंने सीने में बहुत प्यार छुपा रक्खा है,
कोई आशिक कोई दिलदार छुपा रक्खा है |

मेरी साँसों में अभी खुशबु तेरी आती है ,
जाते हो जो तो जान मेरी  जाती है |
ख़ुशी मिलती है आजकल ये अश्क पीने में,
हर बार जो सैलाब उठते सीने में | 

है मुझे गम ये इक इज़हार छुपा रक्खा है,
कोई आशिक कोई दिलदार छुपा रक्खा है|

मैं नज़रें उठाई तो तुने परदे किये मुझसे,
मेरा रब है तुही, मैंने सजदे किये तुझसे |
मेरी नफरत में भी मुहब्बत अभी बाकी है,
ये वो प्यार है जो जाते नहीं जाती है |

मैंने दुनिया से तुझे हर बार छुपा रक्खा है,
कोई आशिक कोई दिलदार छुपा रक्खा है |

तू न माने, न मानने के कई बहाने हैं,
बेवफाई और बेरुखी न तुझे आने हैं|
जो भी कहले तेरी आँखें तो बयां कर देंगी,
हवाएँ ये पतझड़ भी जवान कर देंगी |

तू है मेरी, तूने ये इख्तियार छुपा रक्खा है,
कोई आशिक कोई दिलदार छुपा रक्खा है |

'अतुल'


ग़ज़ल: ठहर जाइये

अभी हौसला है, चले आइये ,
अभी जाँ है बाकी ठहर जाइये |

मुहब्बत को जितना भी नासूर समझो,
ये ज़ख्म है मीठा कुरेदे जाइये |

बहुत सी वफ़ा है आँखों में मेरी,
हर खता की सज़ा मुझको दे जाइये |

बहारों को भी इतना गुमाँ न होगा,
आये हैं तो ज़रा देर रुक जाइये |

शमा है अधूरी मैं आधा जला हूँ,
धीरे धीरे हमको जलाते जाइये |

नहीं जानता बिन तेरे मैं क्या हूँ,
मेरे बिन तू क्या है ये फरमाइए |

'अतुल'


नज़्म : कान सुनते नहीं

टूटे हैं कबसे हम, क्यूँ बिखरते नहीं,
चीख है तो दीवारों में, कान सुनते नहीं |

नस में है नशा घुल रहा कि ज़हर,
काम आती न दुआ बुझ रही है नज़र |

अश्क बहते हैं, आंसू निकलते नहीं,
चीख है तो दीवारों में, कान सुनते नहीं |

मैं अकेले चला हूँ, ये है मेरा रास्ता,
पीछे आना नहीं, तुमको है वास्ता |

राह दिखती मगर कांटे दिखते नहीं,
चीख है तो दीवारों में, कान सुनते नहीं |

वो खफा हैं, जता के ख़ुशी तो मिली,
कुछ न खला, ये बेबसी तो खली |

मुस्कराहट है लबों पे, घाव छिपते नहीं,
चीख है तो दीवारों में, कान सुनते नहीं | 

'अतुल ' 

ग़ज़ल : गम न होता

शायद तेरी बेवफाई का हमें इतना गम न होता,
अगर दिल में सैलाब मुहब्बत से कम न होता |

बहुत सी करवटें तेरे बिस्तर में अरमान लेते मेरे,
तेरी चादर से बड़ा अगर दिल का वहम न होता |

कुछ दिख जाती दरारें भी रिश्तों की दीवारों में,
अगर इस बारिश को दीवारों पे रहम न होता |

न किस्सा सुनाना किसीको, हसेंगे तुमपे मेरी जां,
ये किस्सा नहीं ये हादसा है जो ख़तम न होता |

चले जाओ भले रुकने से अब क्या फ़ायदा होगा,
हर घाव भरने के लिए वक़्त का मरहम न होता |

'अतुल'

कब तक इंतज़ार

शाम ढली अब क्या जतन हर बार करे,
दिल कमज़ोर है, कब तक इंतज़ार करे |

धागे रिश्तों के कमज़ोर हैं ये जानते हैं,
जो ये घाव सिये तो अंग भी बेकार करे |

उठा के सपनों का बोझ पलकों पे चले,
गिरे तो खुदको, रहे तो चलना दुश्वार करे |

सोचा बहुत कि मंजिल के आगे बढ़ जाएँ,
ये दिल है  नादाँ, हर मंजिल पे प्यार करे |

नदी चली आती है आगे थोड़ी बावफा है,
कटे घुले भले पर आखिर क्या कगार करे |

छोड़ भला क्या और बुरा क्या होना है,
जंग है दिल की, ये जीते को भी हार करे |

'अतुल'

इल्तिजा

इक इल्तिजा करता हूँ, मुझे कोई याद न करे,
मेरी चाहत कोई कभी, मेरे जाने के बाद न करे |

इतना ही जीता हूँ के हर ख़ुशी मिलती हमें,
मेरे गम में आंसू दिल के कोई बर्बाद न करे |

जज़्बात हमें सरे आम ज़लील करने लगे हैं,
दिल से इन्हें कोई गलती से आज़ाद न करे |

मेरे दिल के टुकड़े तेरी राह पर बिखरें ज़रूर,
है कसम तुझे चुभे कभी तो तू फरियाद न करे |

तू चाहे न माने पर ऐसा हुआ नहीं कभी कि,
मैं आँखें मूंदूं और दिल तुझे फरियाद न करे |

- 'अतुल' 

ग़ज़ल : मांग लें

तेरी बेवफाई के बदले क्यूँ न बेखुदी मांग लें,
ज़िन्दगी मुबारक तुझे, हम ख़ुदकुशी मांग लें |

तोड़ दे तू दिल हजारों, गुल बिखरादे तू कई,
चल के उनपे कांटो से ही, हम हर ख़ुशी मांग लें |

तेरी महफ़िल न मिली तो सावन भी आया नहीं,
सोचता हूँ थोड़ी मुहब्बत, पतझड़ से ही मांग लें |   

तेरा सर था मेरे कंधे, दिल किसी की बांह में,
ख्याल आया फिर, क्यूँ न तेरी दोस्ती मांग लें |

मेरी मय्यत पे तशरीफ़ जो लाये तो सोचा,
खुदा से हम काफिर क्यूँ न, ज़िन्दगी मांग लें |

- 'अतुल'




ग़ज़ल: साये


तमन्ना की महफ़िल में मुझे खजाने मिलने लगे,
थोड़ी सी छाँव में भी यहाँ साये सभी पलने लगे|

दो वक़्त का मुद्दा उठाया था बस नाम के लिए,
भरी बारिश में कोरे कागज़ सबके जलने लगे|

छोटी सी नसीहत से डराया सबने बेतहाशा हमें,
सुबह की धुप में ही हम मोम से पिघलने लगे|

मेरी बुराइयों पर था कोसा मुझे हर इक बात पर,
मेरे ठन्डे होते ही देखो  हाथ सब मलने लगे|

अभी है नाज़ुक नब्ज़ मेरी थामना तुम गौर से,
ये क्या तुम तो  बस कफन छोड़कर चलने लगे|

- 'अतुल'

नज़्म : नहीं आता

मजबूर हूँ मैं कितना, कहना नहीं आता |
तेरी ही तरह मैं भी हूँ, रहना नहीं आता |

मैं बंदिशों से लड़ रहा हूँ, तूने जंजीरें तोड़ दीं |
मुहब्बत के पंछी को अकेले, उड़ना नहीं आता |

तू छोड़ चला मुझको, सूरज सा बढ़ गया |
मैं तालाब का पानी हूँ, बढ़ना नहीं आता |

ज़माने से भी लड़ गया जो मेरे आगे अड़ा |
अब तू लड़ा है, तुझसे लड़ना नहीं आता |

नासूर हूँ दिल का, मारोगे तो जी जाऊंगा |
कर मुहब्बत से क़त्ल मुझे, मरना नहीं आता |

ले चल मुझे तू जहाँ जाने से सुकून मिले |
कास के पकड़ना मुझे मुड़ना नहीं आता |

'अतुल'




  

नज़्म

बहुत दर्द है दिल में आज साज़ नहीं, 
ये मेरी आह है दिल की, आवाज़  नहीं|

छोटी सी थी कहानी जो सुना न सके,
कभी खबर न थी तुझे कभी हालात नहीं|

क्या कहूं मैं ये कहना है बड़ा मुश्किल,
तू जो पूछे तो बस कहूं कि कोई बात नहीं|

तू जानता है सब पर खामोश क्यूँ है,
मेरी जान जा रही है, तुझे एहसास नहीं|

ठोकर मिले ज़माने से तो क्या मुझको,
मैं हूँ तेरा, इस में कोई भी राज़ नहीं| 

इतना बड़ा दिल है तेरा, फिर ज्यादती क्यूँ,
जीने को पल दिए पर मिलने को मुलाक़ात नहीं|

है क्या डर तुझे, ये कह दे तू मुझसे,
सूरज दिए को, इश्क़ इकरार को मोहताज नहीं|

ये ग़ज़ल है तेरी बस लिखता हूँ मैं,
मेरे लब हैं पर इनमे मेरे अलफ़ाज़  नहीं|

'अतुल'  

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