दुश्मनी निभाने लगी

इश्क की हर अदा, मुझको लुभाने लगी,
क्या कहें दिल्लगी दुश्मनी निभाने लगी |

बचाया हवाओं से तो, चिरागों को  हमने,
क्या करे जो लौ ही हमें जलाने लगी |

सोचा था मिटादेंगी, दूरियां  हसरतों को,
हर इक दूरी तुमसे ये बेकरारी बढाने लगी |

बेतहाशा फरेब तुमने, कई किये हों  मगर, 
तुम्हारी आँखें हमें सब सच बताने लगी ।

मैं तुम्हें नशे के, हर घूट में पीता रहा ,
तुम मुझे आंसू की हर बूँद में बहाने लगी ।

तेरे इत्र की खुशबू मेरे कुरते पे सजती थी,
वही खुशबु तुम मेरी कब्र पे सजाने लगी ।

'अतुल'

जाने का इंतज़ार

अब तो हवाओं में भी इज़हार है ,
क्यूँ  हमें जाने का इंतज़ार है ।

जिस वक़्त को दिल तकता था,
दिल उसी वक़्त का पहरेदार है ।

टूटी सुलगी रातें बड़ी लम्बी थी,
बड़ा छोटा सा ये इकरार है ।

हर ज़ख्म ने नफरत न की तुमसे,
ज़ख्मों को मरहम पे एतबार है ।

छोड़ कर अनकही सुन ले अनसुनी,
चाहना आसान है कहना दुश्वार है ।

बहुत छोटी है साँसों की ये लड़ी ,
जीने दे ये ज़िन्दगी बस एक बार है ।

'अतुल'

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