ग़ज़ल : बहाना

सूफी संगीत में ग़ज़लों में खुदा को महबूब बताया जाता है. और मुहब्बत को इबादत. शायद इसी लिए सूफी सुन कर ऐसा एहसास होता है कि खुदा के करीब ही अपनी रूह जा पहुंची हों. आगे जो लिख रहा हूँ उसके ज़रिये मैं खुदा को बस एक बहाना समझकर एक चाहनेवाले की इबादत का नमूना पेश कर रहा हूँ. खुदाई तो बस मुहब्बत का बहाना है. गौर फरमाइयेगा ..... 

सांस चलती है सीने में, तेरी इनायत है,
खुदा की मर्ज़ी तो बस एक बहाना है.

हों रहीं थी मुकम्मल जबसे दुआएं मेरी,
मैं ये समझा था तुझे अब तो आना है.
लड़ रहा था मैं खुदा से तेरे लिए,
मेरी खुदगर्जी तो बस एक बहाना है.

मेरे खंडहरों में तेरी ग़ज़ल गूंजी है,
ये गीत वही अपना बड़ा पुराना है.
रोज़ रोता हूँ तेरी जुदाई में मैं,
नग्मे गाना तो बस एक बहाना है.

किसी ने कहा है ये पागल कोई,
कोई ये न समझा कि दीवाना है.
मैं आशिक ही होने को आया यहाँ,
ये नाम होना तो बस एक बहाना है.    

तुझे पहचान कर मेरी पहचान को,
खो दिया मैंने, अब क्या गंवाना है.
तेरा नाम ही लेके जिंदा हूँ मैं,
न याद आना तो बस एक बहाना है.

तेरे दीदार से ही रगों में मेरी,
जान दौड़ी, गवाह ये ज़माना है,
तेरा दामन छोड़ते ही मर गया मैं,
सांस लेना तो बस एक बहाना है.

बहुत शुक्रिया.
' अतुल '
5 Responses


  1. neha Says:

    hamesha ki tarah, naayaab.




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