ग़ज़ल : गम न होता

शायद तेरी बेवफाई का हमें इतना गम न होता,
अगर दिल में सैलाब मुहब्बत से कम न होता |

बहुत सी करवटें तेरे बिस्तर में अरमान लेते मेरे,
तेरी चादर से बड़ा अगर दिल का वहम न होता |

कुछ दिख जाती दरारें भी रिश्तों की दीवारों में,
अगर इस बारिश को दीवारों पे रहम न होता |

न किस्सा सुनाना किसीको, हसेंगे तुमपे मेरी जां,
ये किस्सा नहीं ये हादसा है जो ख़तम न होता |

चले जाओ भले रुकने से अब क्या फ़ायदा होगा,
हर घाव भरने के लिए वक़्त का मरहम न होता |

'अतुल'

कब तक इंतज़ार

शाम ढली अब क्या जतन हर बार करे,
दिल कमज़ोर है, कब तक इंतज़ार करे |

धागे रिश्तों के कमज़ोर हैं ये जानते हैं,
जो ये घाव सिये तो अंग भी बेकार करे |

उठा के सपनों का बोझ पलकों पे चले,
गिरे तो खुदको, रहे तो चलना दुश्वार करे |

सोचा बहुत कि मंजिल के आगे बढ़ जाएँ,
ये दिल है  नादाँ, हर मंजिल पे प्यार करे |

नदी चली आती है आगे थोड़ी बावफा है,
कटे घुले भले पर आखिर क्या कगार करे |

छोड़ भला क्या और बुरा क्या होना है,
जंग है दिल की, ये जीते को भी हार करे |

'अतुल'

इल्तिजा

इक इल्तिजा करता हूँ, मुझे कोई याद न करे,
मेरी चाहत कोई कभी, मेरे जाने के बाद न करे |

इतना ही जीता हूँ के हर ख़ुशी मिलती हमें,
मेरे गम में आंसू दिल के कोई बर्बाद न करे |

जज़्बात हमें सरे आम ज़लील करने लगे हैं,
दिल से इन्हें कोई गलती से आज़ाद न करे |

मेरे दिल के टुकड़े तेरी राह पर बिखरें ज़रूर,
है कसम तुझे चुभे कभी तो तू फरियाद न करे |

तू चाहे न माने पर ऐसा हुआ नहीं कभी कि,
मैं आँखें मूंदूं और दिल तुझे फरियाद न करे |

- 'अतुल' 

Blog Flux

Poetry blogs