by Shirshendu Pandey
ग़ज़ल
मेरे चाहनेवाले महबूब मेरे कई इल्जाम लगते होंगे,
मेरी आँखों की नमी से वो मेरे अश्क चुराते होंगे.
बेकरारी के ये सबक सीख के भी बाज़ नहीं आते,
सूखी बस्ती है अरमानों की, वो दिलों में आग लगाते होंगे.
मेरी बेवफाई को कभी इतना, न समझा न तराशा गया,
वो अपने जिस्म पर मेरे दिए ज़ख्म यूँ सजाते होंगे.
मेरे जीते मेरी ज़िन्दगी के लिए लड़ते थे इस तरह,
मेरे मरने पे मेरी मौत का फरमान सुनते होंगे.
कफ़न तैयार होगा पर कब्र में सांस मेरी बाकी होगी,
वो रो रो कर मेरी साँसों की आवाजों को दबाते होंगे.
-- ' अतुल '
by Shirshendu Pandey
बाजारों की हलचल
ये बाजारों की हलचल है.
यहाँ पुराने हाथों से नए हुस्न की नुमाइश होती है,
ये बाजारों की हलचल है, कोई जिस्म नया बिकता होगा.
यहाँ सदियों के सूखे में गम ही बारिश बन कर गिरता है,
ये बाजारों की हलचल है, कोई बंजर ईमान ही सिंकता होगा.
यहाँ पुराने करतब कब से नए खिलाडी दिखाते हैं,
ये बाजारों की हलचल है, कोई पर्दा फिर से खिचता होगा.
यहाँ वो जंगल के जानवर आदमखोर तो खुल्ले घूमा करते है,
ये बाजारों की हलचल है, कोई इंसान पिंजडे में दिखता होगा.
यहाँ खनक और चमक पैगम्बर बोलने का हक रखते है,
ये बाजारों की हलचल है, कोई सिक्का पुराना घिसता होगा.
अरे! तुम क्या समझे, ये बाजारों की हलचल है.
- ' अतुल '
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by Shirshendu Pandey
एक सवाल और उनके मुट्ठीभर जवाब
इस शहर के शोर में, ज़िन्दगी के हर मोड़ में,
भूल से या शायद याद से भूल जाते हैं,
एक सवाल और उनके मुट्ठीभर जवाब.
किसी खुदगर्जी से या किसी गर्म सियासत से,
पूंछते किसी ठंडी अंगीठी या सुलगती बगावत से,
एक सवाल और उनके मुट्ठीभर जवाब.
हिंदुस्तान-पाकिस्तान और सरहद की जंग में,
महल आलीशान में या गलियाँ गन्दी तंग में,
एक सवाल और उनके मुट्ठीभर जवाब.
जानते हैं एहसास से पर खोजते हैं किताब में,
गज़लकार के मुशायरे में, छलकी शराब में,
एक सवाल और उनके मुट्ठीभर जवाब.
एक सवाल - मैं कौन हूँ?
और इसके मुट्ठीभर गलत जवाब.
- ' अतुल '
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