गज़ल

गज़ल

बिना समझे मुझे कहते हैं तुम्हें समझना है नामुमकिन ,
कोई एक मर्तबा ही सही कोशिश करके तो देखे.

हमदर्दी के काबिल तो समझा सबने, मुहब्बत के लायक नहीं,
कोई तसव्वुर में सही मुझे एक बार उस नज़र से तो देखे.

मेरी ज़िन्दगी हो बेमंजिल, मेरा जीना बेमतलब ही सही,
पर मेरा काम है मुश्किल, कोई रातभर आहें भर के तो देखे.

कौन कहता है नशा बस शराबी ही जाना करते हैं,
कोई जाए और किसी बेवफ़ा से मुहब्बत कर के तो देखे.

नासमझी नहीं कहते गैरत रखने वालों से मुहब्बत करने को,
क्या सुकून है बेहोशी में, वो होश किसी के नाम करके तो देखे.
--' अतुल '

1 Response
  1. bahut khoob atul jee...swagat hai aapka blogjagat mein


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