वन्दे मातरम बोलना मुझे आज से पहले बहुत गर्व और मातृभक्ति कि भावना से ओत-प्रोत कर देता था. आज मुझे अगाध दुःख और लज्जा की अनुभूति देता है. क्यों? क्योंकि मैं एक कवि हूँ, क्योंकि मैं एक शायर हूँ, क्योंकि मैं एक सिपाही हूँ, क्योंकि मैं हिन्दुस्तानी हूँ और इसके साथ ही मैं हिन्दू भी हूँ.
मेरा ये लेख खासकर मुस्लिम भाइयों के लिए है. मैं एक सिपाही हूँ और शहीद होना मुझे जान से भी प्यारा है. पर मैं अकेला नहीं हूँ, मेरे कई मुस्लिम दोस्त भी हैं जो इसी जज्बे को महसूस करते हैं. मुझे उर्दू बहुत मीठी लगती है, हिंदी और बंगाली से भी ज्यादा. मैं इतिहास में बहुत पढाई कर चूका हूँ और इसी लिए जब कल से अखबारों में शब्दों की हलचल से वाकिफ हुआ तो लगा कि अगर खामोश रहा तो रूह मेरी मुझे नागवार होगी. तो सुनिए.
एक कवि और शायर कि हैसियत से मैं ये मानता हूँ कि वन्दे मातरम और सारे जहाँ से अच्छा , ये दोनों ही हमारे राष्ट्रगान जन गन मन से बेहतर हैं (साहित्यिक सन्दर्भ में). इतिहास कि जानकारी मुझे ये भी याद दिलाती है कि हालाकि ये दोनों में से कोई भी एक राष्ट्रगन हो सकता था पर धार्मिक पक्षपात के आरोप के डर से दोनों को ही सहमती न देना सियासी मजबूरी साबित हुई.
एक सिपाही होने कि हैसियत से मैं ये कह सकता हूँ कि, मैं और मेरे कई मुस्लिम दोस्त वन्दे मातरम बड़ी ही ख़ुशी के साथ गाते हैं. हम साथ साथ मंदिर जाते हैं और साथ ही साथ मस्जिद में सजदा भी करते हैं. न वो मन्दिर में हाथ जोड़कर कोई कम मुस्लमान ही हुए और न ही मैं सजदा करके एक गलत सनातनी(हिन्दू) ही. हाँ पर ऐसा करके हम ये समझ गए कि देश के लिए जो हमारा जज्बा था न ही वो वन्दे मातरम के गायन का मोहताज था और न ही उससे अलग. हमने बस बिना कोशिश किये ये सीखा कि हम एक दुसरे को समझकर ही देश कि रक्षा कर सकते हैं.
मुझे ये कहना भी गर्व देता है कि मैंने न केवल गीता, देवी भागवत, रामायण और महाभारत पढ़े हैं बल्कि कुरान और बाइबल भी उसी चाव और दिलचस्पी से पढ़े हैं. शायद इसी लिए मैं लिखने का अभिकारी हूँ और आप पढने के. क्योंकि वन्दे मातरम् एक गीत है इसके कई भाव निकाले जाते हैं. कविता पानी कि तरह होती है जिस प्याले में डालो ढल जाती है. न ही ये देवी मां का भजन है और न ही कोई वेदोक्त हिन्दू पद. अगर ये कुछ है तो वो है मां कि महिमा का गान. वो मां जो हमें पैदा करती है, हमें पहचान देती है, हमें पालती है और मज़बूत बनाती है. मां कि पूजा कौन धर्म गलत कहता है. पर ये मां वो मां है जो निस्स्वार्थ भावना से बस देती है, ये मातृभूमि है, इसे मदर लैंड भी कहते हैं. कविता में मां को देश से रूपक के द्वारा जोड़ा है.
ये सब तो ठीक है, आपको हक़ है कि आप अपनी राय रखें पर क्या किसी भी धार्मिक संस्था या सियासी मोर्चे को ये हक़ है कि वो ये तय करे कि इस कविता का क्या मतलब निकाला जाय? एक इंसान होने की हैसियत से ये अधिकार तो खुद खुदा भी आपसे नहीं छीनता, तो ये कौन है जो हमारी सोच की उड़ान रोकना चाहता है. सच तो ये है कि छोटे दिमाग वाले लोग कम जानकार लोगों के दिलों पे राज करते हैं. एक मुसलमान तो अपने ए आर रहमान साहब जो वन्दे मातरम् गाते हैं, और पूरे जोर से. मेरी नज़र में उनसे अच्छा मुसलमान, इंसान और हिन्दुस्तानी कोई और नहीं. और बड़ा सच तो ये भी है कि हमारे झंडे में केसरिया रंग भी है, पर वो तो सनातन धर्म में धर्म का रंग है, उसके बीच में धर्म का ही अशोक चक्र भी है. फिर तो झंडे को सलामी देना भी काफिरों का काम होगा. और इन धार्मिक संस्थाओं का क्या है? ये तो कह देंगे देशभक्त के लिए झंडे को सलामी देना कोई ज़रूरी नहीं. और सच है कि ये सब तो बहाने ही हैं. पर कुछ तो वजह रही होगी कि अशफाकुल्ला खान और मौलाना आजाद ने इसी गीत के ज़रिये जन्नत हासिल की. या शायद वो सच्चे अर्थों में मुस्लमान न थे.
';अतुल'
*
वंदे मातरम् न तो फतवों का मोहताज है और न ही धर्मबरदारों के कंठों का।
bahut hi sateek baaten ki hain aapne bahut hi simple sabdon mein.... har aam aadmi ki yahi bhavnaayen hain.... bas siyasi log ye nahi samajhte...
aapke jajve ko salaam
bahut achha likha hai
padhkar khushi hui
nice very nice
aapka bahut dhanyawad..
is lekh ko akhbaar mein chhapna chahiye tha. samaj ko iski aawashyakta hai.
woh to theek hai. par akhbaaron mein aam admi ke vichar kabhi nahin chhapte.
khair aapka shubh naam?
ji main ajeet mishra hoon.
ajeet ji, tareef ke liye tahe dil se shukriya.