ग़ज़ल : महबूब से बातें
दो इरादों को शिकस्त इस तरह,
के लोग कहें मिज़ाज़ फीका है.
हम भुलादें वोह गुस्ताखी कैसे,
वो हुनर हमने तुम्ही से सीखा है.
वोह तुम्हे अव्वल कहें अक्सर,
तो कहो बस गम ही तो जीता है.
हो परेशां कि होगा जीना मुश्किल,
भला जीने को कौन जीता है.
मेरी बातें चुभें तो मुआफ करना,
मेरा सलीका ही बड़ा तीखा है.
ज़रा सी मशक्कत तकलीफ हो तो,
छुपने का, बंद आँखें सही तरीका है.
-- 'अतुल'
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