इल्तिजा

इक इल्तिजा करता हूँ, मुझे कोई याद न करे,
मेरी चाहत कोई कभी, मेरे जाने के बाद न करे |

इतना ही जीता हूँ के हर ख़ुशी मिलती हमें,
मेरे गम में आंसू दिल के कोई बर्बाद न करे |

जज़्बात हमें सरे आम ज़लील करने लगे हैं,
दिल से इन्हें कोई गलती से आज़ाद न करे |

मेरे दिल के टुकड़े तेरी राह पर बिखरें ज़रूर,
है कसम तुझे चुभे कभी तो तू फरियाद न करे |

तू चाहे न माने पर ऐसा हुआ नहीं कभी कि,
मैं आँखें मूंदूं और दिल तुझे फरियाद न करे |

- 'अतुल' 

7 Responses

  1. कुछ खफ़ा खफ़ा से हैं ? गज़ल खूबसूरत है

    मरी चाहत कोई कभी ... मरी की जगह मेरी कर लें



  2. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच


  3. शब्द-शब्द संवेदना भरा है...


  4. sunder bhaav
    sab jeete ji hi ji lena chahte ho
    marne ke baad koi yaad na kare

    bahut khoob

    aap bhi aaiye

    Naaz


  5. मेरे दिल के टुकड़े तेरी राह पर बिखरें ज़रूर,
    है कसम तुझे चुभे कभी तो तू फरियाद न करे ...

    क्या बात है ... दिल से निकला हुवा शेर है ....


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