मुहब्बत

मुहब्बत समझना और करना दोनों ही महज़ इत्तेफाक़न ही होता है |
पर आज ऐसा लगता है कि ज़रूर ये कुदरत का इशारा है |

तो सोचा कि बारिश क्यूँ होती है? क्या बारिश ये पूंछती है कि वोह क्यूँ बरसे? ज़मीन प्यासी है भी कि नहीं? क्या उसकी ज़रुरत है भी या नहीं? नहीं, कभी नहीं? वोह सिर्फ बरसना जानती है | कभी सावन कि मर्ज़ी से तो कभी बिना सावन के ही बेवक्त ही बरस उठती है | किसे पता बरसने में उसकी मर्ज़ी भी शामिल है या नहीं |

ये भी सोच कि लहरें सागर के कगार पर बार बार क्यूँ आती हैं? उन्हें तो फिर लौटना ही है| क्यूँ बेसब्र होके आ गिरती हैं? क्या सोचती हैं, साहिल को साथ ले जायेंगी? या ये सोचती हैं कि हों सकता है इस बार साहिल हमें लौटने न दे, आगोश में भर ले| पर इतनी मर्तबा बेबस, लाचार और हताश हों कर लौटने के बाद भी वोह बार बार उसे भिगोती हैं, उठती हैं, गिरती हैं, हर पल हर लम्हा सब जान कर भी वोह फिर लौटती हैं| हर बार भिगोने पर भी साहिल का दिल नम नहीं होता| वोह साहिल का हक है| उसे हक है कि वोह न हिले और ये लहरों का भी हक है कि वोह उसे भिगोने से न चूकें|  पर हाँ सदियों की मुहब्बत से साहिल बदलता  है| मुहब्बत कभी ज़ाया नहीं होती| उसका असर हर शय पर होता है, कभी न कभी| चट्टान टूट जाते हैं, किनारे कट जाते है और साहिल बदल जाते हैं|

मुहब्बत का सबसे बड़ा सबक तो हमने खुदा से ही सीखा|  उसने पूरी कायनात बनाई पर खुद अकेला रह गया| खुदा ने अपने लिए कुछ नहीं बनाया| इंसान को बनाया और ये हक भी दिया कि वोह उससे मुहब्बत करे या नफरत| और अगर उससे नफरत करे तो इसके बावजूद वोह सबसे उतनी ही मुहब्बत करता है| मुहब्बत के बदले में मुहब्बत न मिलना बस उसे ही गवारा हों सकता है जो मुहब्बत करना जनता हों| खुदा, तेरी मुहब्बत को सलाम|
3 Responses

  1. prahlad mishra Says:

    bahut sundar aur ashavaadi,
    shubhkamnayein


  2. अगर आप कविता या गजल नहीं लिखते होंगे तो खुद पर बड़ा अन्याय करते है
    ओर अगर लिखते है तो आपकी एक नई गजल पध्वाईये


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