ग़ज़ल

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ग़ज़ल 

समा रंगीन रहे कब तक, हमीं बेजार हो गए,
करने चले थे हम वफ़ा, बेवफा हर बार हो गए.

उम्मींदों से पला और अश्कों से सींचा था,
पक्की फसल थी और बारिश के आसार हो गए.

इस दुनिया में खुदाई मुहब्बत ही से शुरू होती है,
मैंने सर झुका दिया और तुम परवरदिगार हो गए.

कोई ऐसा न था जिसे हम कभी दुआएं देते,
किसी एक को दुआ जो दी वही बीमार हो गए.

उनहोंने ही दिए थे हमको ख्वाब नजरानों में,
मेरी आँखों में सपनों के टुकड़े हज़ार हो गए.

मुहब्बत की वोह जंजीरें शीशे की होती हैं,
कोई ये नहीं मानता हम गिरफ्तार हो गए.

मेरे कई चेहरे हैं, आप किस एक से खफा हैं,
बेबस हैं हम मानिए सभी हमसे गद्दार हो गए.

अपने कारवां को मोड़ने में देर करदी आपने,
हम कभी के किसी काफिले में सवार हो गए.

-- 'अतुल'             पिछली रचना पढें 




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