ग़ज़ल: रोकना ज़रूर


रोकना ज़रूर 

मेरे जाने से पहले टोकना ज़रूर,
मैं रुकूंगा नहीं पर रोकना ज़रूर.

अपनी हमदर्दी से एहसान कर देना,
शर्मिंदगी से झुकी इक नज़र देना.
मेरे गम से अपने आंसू पोछना ज़रूर,
आंसू रुकेंगे नहीं पर रोकना ज़रूर.

कहीं आपको भी मुहब्बत तो नहीं,
इस घडी को रोकने की चाहत तो नहीं.
ये है वहम तो इसे तोड़ना ज़रूर,
वक़्त रुकता नहीं पर रोकना ज़रूर.

मेरी ग़ज़लों का रुख आप नहीं समझे,
मौके भी आपके पास नहीं कम थे.
कुछ लिखने की कोशिश में गोचना ज़रूर,
कलम रुकेगी नहीं पर रोकना ज़रूर.

-- ' अतुल '                                   पिछली रचना पढें 

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1 Response
  1. बिल्कुल सही समय पर सम्भलना जरुर/सुन्दर विचार/बधाई!


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