टूटे हैं कबसे हम, क्यूँ बिखरते नहीं,
चीख है तो दीवारों में, कान सुनते नहीं |
नस में है नशा घुल रहा कि ज़हर,
काम आती न दुआ बुझ रही है नज़र |
अश्क बहते हैं, आंसू निकलते नहीं,
चीख है तो दीवारों में, कान सुनते नहीं |
मैं अकेले चला हूँ, ये है मेरा रास्ता,
पीछे आना नहीं, तुमको है वास्ता |
राह दिखती मगर कांटे दिखते नहीं,
चीख है तो दीवारों में, कान सुनते नहीं |
वो खफा हैं, जता के ख़ुशी तो मिली,
कुछ न खला, ये बेबसी तो खली |
मुस्कराहट है लबों पे, घाव छिपते नहीं,
चीख है तो दीवारों में, कान सुनते नहीं |
'अतुल '