तमन्ना की महफ़िल में मुझे खजाने मिलने लगे,
थोड़ी सी छाँव में भी यहाँ साये सभी पलने लगे|
दो वक़्त का मुद्दा उठाया था बस नाम के लिए,
भरी बारिश में कोरे कागज़ सबके जलने लगे|
छोटी सी नसीहत से डराया सबने बेतहाशा हमें,
सुबह की धुप में ही हम मोम से पिघलने लगे|
मेरी बुराइयों पर था कोसा मुझे हर इक बात पर,
मेरे ठन्डे होते ही देखो हाथ सब मलने लगे|
अभी है नाज़ुक नब्ज़ मेरी थामना तुम गौर से,
ये क्या तुम तो बस कफन छोड़कर चलने लगे|
- 'अतुल'