पंखों पर उड़ने को ज़माना आज भी बेताब है |
मेरी उड़ान है फीकी, मेरे पंखों पे तेज़ाब है |
परिंदे जो घोसलों से गिर पड़े फिर उड़ेंगे,
कल भले थे कांटे, आज क़दमों तले गुलाब है |
क्यूँ टूटना चाहते हैं बादल पहाड़ों की चोट से,
क्यूँ मचाया कश्तियों ने साहिल पे सैलाब है |
बेकार गुफ्तगू है, क्या अंजाम होगा हौसलों का,
होश पर भारी नशा है, नशे पे भारी शराब है |
नीयत पे सवाल है खुदके, पर ये पूंछता हूँ ,
नेकी है कहाँ आजकल, ज़माना बड़ा ख़राब है |
' अतुल '
मेरी उड़ान है फीकी, मेरे पंखों पे तेज़ाब है |
परिंदे जो घोसलों से गिर पड़े फिर उड़ेंगे,
कल भले थे कांटे, आज क़दमों तले गुलाब है |
क्यूँ टूटना चाहते हैं बादल पहाड़ों की चोट से,
क्यूँ मचाया कश्तियों ने साहिल पे सैलाब है |
बेकार गुफ्तगू है, क्या अंजाम होगा हौसलों का,
होश पर भारी नशा है, नशे पे भारी शराब है |
नीयत पे सवाल है खुदके, पर ये पूंछता हूँ ,
नेकी है कहाँ आजकल, ज़माना बड़ा ख़राब है |
' अतुल '
आपका पोस्ट सराहनीय है .
कृपया इसे भी पढ़े-----पर्यावरण संरक्षण पर एक अनुकरणीय अभियान
http://ashokbajaj99.blogspot.com/2010/08/blog-post_28.html
Bahut hi accha likhte hain aap...
shukriya..!