बड़ी गुमनाम गलियां हैं, हमें सब गैर बताते हैं |
कोई है रूबरू हमसे शक्ल पर बैर दिखाते हैं |
थोड़े इशारे कर के छुप गए हैं वो जुगनू जिन्हें,
हम परवाने जानकार जाने कब से जलाते हैं |
इस ज़िन्दगी का एक पल तो खुल के हम जीलें,
कि इस इक पल भी वोह हमसे खुदको छुपाते हैं |
अभी भी डर गए तो कब उठेंगे अरमान अनकहे,
उम्रभर के वादों को चलो इसी पल निभाते हैं |
दूरियां हैं ऐसी हम उन्हें कोस भी तो नहीं सकते,
इन्हीं फासलों से वो हमसे मुहब्बत जताते हैं |
' अतुल '
Another good read. Loved the last 4 lines. Good luck for the life ahead.