ग़ज़ल

अभी इतनी सी तो उम्मीद है कि,
कम से कम तेरे गुलशन तो आबाद हैं.

थोडा सा सावन कितना बरसता,
पर आँखें अभी भी बरसने को आज़ाद हैं.

मेरे घर और उनके घर का नाता है कुछ,
दुनिया तो दोनों तरफ ही बर्बाद है.
थोड़ी सी हलचल थी मेरे घर में,
थोडा उनके भी घर में फसाद है.

ठोकर ज़मीन पर खाते रहे,
अपनी हालत तो हमेशा से ही ख़राब है.
पहले हाथों में गुलाब था,
आज कल हाथों में शराब है.

मेरी हर बात बोरियत होती है,
अच्छा है कि उनकी अलग हर बात है.
मेरी आँखों में जो अश्क कमजोरी कहलाए,
वोह उनकी आँखों में जज़्बात है.


शुक्रिया

'अतुल'
2 Responses

  1. arun Says:

    bahtareen .. shubhkamnaayein


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