दुश्मनी निभाने लगी

इश्क की हर अदा, मुझको लुभाने लगी,
क्या कहें दिल्लगी दुश्मनी निभाने लगी |

बचाया हवाओं से तो, चिरागों को  हमने,
क्या करे जो लौ ही हमें जलाने लगी |

सोचा था मिटादेंगी, दूरियां  हसरतों को,
हर इक दूरी तुमसे ये बेकरारी बढाने लगी |

बेतहाशा फरेब तुमने, कई किये हों  मगर, 
तुम्हारी आँखें हमें सब सच बताने लगी ।

मैं तुम्हें नशे के, हर घूट में पीता रहा ,
तुम मुझे आंसू की हर बूँद में बहाने लगी ।

तेरे इत्र की खुशबू मेरे कुरते पे सजती थी,
वही खुशबु तुम मेरी कब्र पे सजाने लगी ।

'अतुल'
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