मोहताज हैं जो किस्मत के वो खाक सज़ा देते हैं,
महरूम थे जो उजालों से वोह चिराग बुझा देते हैं |
भीड़ में घुसते हैं जो मुजरिम ढूँढने के बहाने से,
पूंछो तो उनसे वोह किसको पास पनाह देते हैं |
वोह डरते थे इल्जामों से इस कदर कि छुप गए,
वोह ही तो खुद अफ्वाओं को हर बार हवा देते हैं |
खामोश थे हर मुकद्दमे में नजाने क्यूँ अब तलक,
क्यूँ आज वो ही अकेले इन्साफ को सदा देते हैं |
और हसने से हम थे डरते, नज़रों से बचते थे,
आज हम भी खुशियों को दिल से वफ़ा देते हैं |
' अतुल '