ग़ज़ल


क्यों

इस शहर में डूबते जज्बात पूंछते हैं,
हर आदमी यहाँ इंसान क्यों नहीं होता.

मेरे पूछने से पहले ही ये दास्तान सुनाई गई,
इस मुलाकात का कोई अंजाम क्यों नहीं होता.

इतनी दौलत है यहाँ मंदिर मस्जिद में ,
फिर यहाँ नेकी करना आसान क्यों नहीं होता.

हवा वही है, मौसम वही है सदियों से यहाँ,
फिर सुकून से यहाँ कोई काम क्यों नहीं होता.

नेकी फौलाद का ईमान चाहती है, इसलाम नहीं,
अजी, हर बशर यहाँ मुसलमान क्यों नहीं होता.

-- ' अतुल '
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