ग़ज़ल
मेरी हर सदा के बदले एक आवाज़ तो दे,
पास है तो अपने होने का एहसास तो दे.
मजबूर हूँ के मैं छू नहीं सकता तुझको,
गम न कर मेरी साँसों को अपनी साना तो दे.
तेरी मौजूदगी मेरी तन्हाई को डराती है,
आने से पहले मेरी देहलीज़ पर खाँस तो दे.
हर ग़ज़ल है अधूरी, इस बात से वाकिफ हूँ,
सुर बैठेंगे लव्जों पर तू ज़रा साज़ तो दे.
हम भी फ़िदा होने की काबीलियत रखते हैं,
तू हमें अपनों में ओहदा कोई ख़ास तो दे.
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