ग़ज़ल - तलाश
हम सर झुकाते फिरे मजारों पे,
मुहब्बत देती थी दस्तक मेरी दीवारों पे.
उस कश्ती को लहरें ले गईं साथ में,
जिसकी राह तकते थे हम किनारों पे.
लूट कर हैं ले गयी जवानी पतझड़ की,
ये इल्जाम है आज इन बहारों पे.
वो यार कल के अब याद नहीं करते,
चलो छोडो यारों की बात यारों पे.
जो महफिल में इशारे किया करते थे,
वो नाचने लगे हैं मेरे इशारों पे.
हम सजाते थे ज़मीं पर आशियाँ किसीका,
कोई सजा रहा है मेरा घर सितारों पे.
-'अतुल'
bahut khoob likha hai