प्यार के लिए
मौत आती है इकरार के लिए.
जब सोचते हैं जिएँ प्यार के लिए.
अब इशारे भी ज़िन्दगी के लिए हैं कम,
खामोशी ने तेरी तोडा हरदम.
कह उठते हैं वो इनकार के लिए,
जब सोचते हैं जिएँ प्यार के लिए.
हम पहचान में अजनबी लगते हैं,
तेरे अपने सभी ये कहते हैं.
सफाई देते हैं रिश्तेदार के लिए,
जब सोचते हैं जिएँ प्यार के लिए.
हर पल सोचते हैं हो दीदार का,
उनके दर्द-ए-इज़हार का.
हर घडी ठहरती है इन्तेज़ार के लिए,
जब सोचते हैं जिएँ प्यार के लिए.
सांस रुकने को ज़ख्म कितने काफी हैं,
कौन जाने कितने अभी बाकी हैं.
घाव खुलते हैं हर बौछार के लिए,
जब सोचते हैं जिएँ प्यार के लिए.
वो दर्द, थी ज़िन्दगी जिसमे,
वो सितम, थी हर ख़ुशी जिसमे.
मरते हैं मुझे वो हर बार के लिए,
जब सोचते हैं जिएँ प्यार के लिए.
-'अतुल'
bahut khoob kaha aapne
हम पहचान में अजनबी लगते हैं
शायद आप गँहराइ मे जा रहें है।
बधाइ---- कभी-कभी मरे ब्लाग पर भी पधारें।