by Shirshendu Pandey
इंसानों की भीड़ में
इंसानों की भीड़ में मुझे न कहीं इंसान दिखे.
मुझे मंदिर दिखे, मस्जिद दिखे, हिन्दू दिखे, मुसलमान दिखे,
पर मस्जिद में अल्लाह न दिखे, मंदिर में न भगवान दिखे.
बिकते हुए सपने दिखे, बिकते हुए अरमान दिखे,
दुनिया के इस बाज़ार में लेकिन, फौलाद के न इमान दिखे.
टी वी दिखी, विडियो गेम्स दिखे, फिल्में दिखीं, शाहरुख़ खान दिखे,
चार साल के बच्चे भी अब मुझे न मासूम दिखे, न नादान दिखे.
परमाणु दिखे, नागासाकी दिखे, इराक और अफगानिस्तान दिखे,
मुझे सपने में दुनिया के नक्शे पर, न पाकिस्तान दिखे, न हिंदुस्तान दिखे.
--' अतुल '
*
by Shirshendu Pandey
ग़ज़ल
हर किसी से यहाँ धोखा ही मैंने खाया है,
कौन अपना है और कौन यहाँ पराया है.
ले चुके है साँसे अपने हिस्से की लगता है,
अब तो हर सांस का लगता नुझे किराया है.
मेरे आंसू यहाँ किसीको नहीं भिगो सकते,
बस महफिल में एक मुद्दा नया उठाया है.
कुछ पहले इसी भीड़ ने पैगम्बर मुझे कहा था,
कुछ पहले ही इन्होंने शैतान मुझे बताया है.
तेरे आगे सब झुकाते हैं मैं भी झुका देता हूँ,
पर सजदे में नहीं मैंने तो बेबसी में सर झुकाया है.
--- ' अतुल '
*
by Shirshendu Pandey

सावन ने अपनी कृपा से कृतार्थ कर दिया है. पानी की सुन्दर बुँदे जहाँ पृथ्वी को तृप्त करती प्रतीत होती हैं, वहीँ मेरे मन में अनायास ही एक सवाल उठा देती हैं. भारत में कुल चार सौ गाँव में पीने का पानी सुलभ नहीं है. और हजारों की संख्या में औरतें (ध्यान दें केवल औरतें ) मीलों चल कर पानी भर भर के लाती हैं. और हममे से कई लोग पानी की कीमत की खिल्ली प्रतिदिन अपने घरों में, अपनी सोसाइटी में उड़ते हैं. कैसी विडम्बना है. यदि आप पानी की कीमत पहचानते हैं तो ज़रा इस कविता को पढें. एक गृहणी अपने छोटे बच्चे को घर छोड़कर पानी के लिए मीलों चलकर, झुलसते हुए जाती है. यदि आपको न्यायाभाव प्रतीत हो तो पानी बचाएं. save water, save life. अफ्रीका में प्रतिदिन दो सौ लोग प्यास से मरते हैं! सोचिये!
चार कोस , पानी की खातिर
मुन्ने को रोता छोड़ आई,
चार कोस पानी की खातिर.
झुलस गई थी धरा भी तपकर,
सिंक चुके थे नंगे पाओं.
प्यास सताती प्यास के लिए,
पर लांग गई कितने ही गाँव.
फिर भी न लडखडाई,
चार कोस पानी की खातिर.
फिर जब लम्बी कतार देखी तो ,
हुआ व्याकुल तन मन प्यासा.
आज नीर की दो बूंद हो संभव,
धुंधली सी लगती आसा.
फिर भी डटकर कतार लगाई,
चार कोस पानी की खातिर.
अब मुर्झा गई तेरी काया,
मन में मुन्ने की पीडा सताती थी,
अब उतरा तो पानी कंठों से उसके,
पर अपनी सुविधा से भी लाज उसे आ जाती थी.
पर क्या करती; प्यास बुझाई
चार कोस पानी की खातिर.
--- ' अतुल '
*
by Shirshendu Pandey
मैं सो जाऊँ तो
जो मैं सो जाऊं तो, कोई आहट हा होने देना,
थकी ज़िन्दगी की थकान है, ज़रा देर और सोने देना.
जो सुनना वीरानों में किसी मायूस की रुदाली,
मेरी तन्हाई न बांटना, बस यूँ ही अकेले रोने देना.
न खोजना मुझे किसी दिन, किसी निशानी के बहाने,
मेरी तस्वीर को मेज़ पर ही किसी किताब में खोने देना.
उठने देना उन उँगलियों को जो मेरी ओर उठेंगी,
दामन पर मेरे दाग पुराने हैं, वक़्त को वक़्त से धोने देना.
--- ' अतुल '
*
by Shirshendu Pandey
ग़ज़ल
तुमसे जुदा मेरी ज़िन्दगी का ये रास्ता है.
दिल न जाने मुहब्बत क्या चीज़ होती है,
बस इतना ही जाने की दिल तुम्हें चाहता है.
कौन है वो जिससे हर सांस पाक होती है,
कौन है वो जिसे हर दुआ में दिल मांगता है.
क्यों है दिल को गम तुमसे दूरी का ये सोचता हूँ,
पलकों में ही रहते हो ये बात नहीं जानता है.
ये हिचकी मुझे सताती है क्यों कबसे बेवजह,
ये तेरी ही याद का है असर दिल खूब पहचानता है.
-- ' अतुल '
*
by Shirshendu Pandey
दुआ
बस एक दुआ सुन ले मालिक बेआब रहूँ बर्बाद रहूँ.
ज़ख्म खा कर हसने को मैं ज़ुल्म बड़ा ही समझता हूँ,
मैं चीखके पुकार सकूं, मैं कमज़ोर रहूँ आज़ाद रहूँ.
हर फ़िक्र से मुझको लगता है जान अभी भी बाकी है,
मैं अब मरने के ही बाद जियूं, मरने के ही बाद रहूँ.
और ढूंढकर मारेंगे मेरे चाहनेवाले पत्थर मुझको,
बड़ा बदनाम है ये नाम मेरा, इसी नाम से सबको याद रहूँ.
मेरे टूटने की गुजारिश कईयों की ख्वाहिश है कबसे,
यूँ ही किसी की ख्वाहिश रहूँ, किसी दिल की फरियाद रहूँ.
--' अतुल '
*
by Shirshendu Pandey
साँस है पर साज़ नहीं
इतनी सी ही तो बात है, साँस है पर साज़ नहीं,
एक गीत जुबां पर आता है, याद है पर याद नहीं.
बीते लोगों को भूल भी जाएँ, पर नज़रें राह तकती हैं,
कानों में मोहल्ले का शोर है, उनके क़दमों की आवाज़ नहीं.
जो बरकत में खेलते हैं लुक्का छुप्पी के खेलों को,
उनकी आँखों में राह कई हैं, पर राहों पर आँख नहीं.
हवा भी गिरकर सागर से कभी न कभी जा मिलती है,
पर खुदसे छुपते तुमसे हमको अपने मिलने की आस नहीं.
वक़्त के आगे सुना झुककर सब गम फ़ीके पड़ जाते हैं,
फिर क्यों तकिया सूखा रह जाए ऐसी कोई रात नहीं.
--- ' अतुल '
by Shirshendu Pandey
नन्हे हाथों में कांच के बर्तन चटक जो जाते हैं ,
खामोशी की राह से बचपन भटक जो जाते हैं .
घुल जाते मिसरी जैसे पानी में ,
गिर पड़ जाते हैं नादानी में ,
कंचों के खेल खेल जाते ,
कुछ कुछ दूर और ठेल जाते .
वोह खेल स्कूल से दूर किसी सड़क को जाते हैं ,
खामोशी की राह से बचपन भटक जो जाते हैं .
कुछ मुस्कान अभी थी बाकी ,
सपने सभी थे अभी तक साथी ,
किसी और दुनिया में चलते हर पग ,
बचपन के कांच से देखा था जग ,
उस दुनिया के उमंग महल तोह पलक झपक खो जाते हैं ,
खामोशी की राह से बचपन भटक जो जाते हैं .
- ' अतुल '
by Shirshendu Pandey
गज़ल
बिना समझे मुझे कहते हैं तुम्हें समझना है नामुमकिन ,
कोई एक मर्तबा ही सही कोशिश करके तो देखे.
हमदर्दी के काबिल तो समझा सबने, मुहब्बत के लायक नहीं,
कोई तसव्वुर में सही मुझे एक बार उस नज़र से तो देखे.
मेरी ज़िन्दगी हो बेमंजिल, मेरा जीना बेमतलब ही सही,
पर मेरा काम है मुश्किल, कोई रातभर आहें भर के तो देखे.
कौन कहता है नशा बस शराबी ही जाना करते हैं,
कोई जाए और किसी बेवफ़ा से मुहब्बत कर के तो देखे.
नासमझी नहीं कहते गैरत रखने वालों से मुहब्बत करने को,
क्या सुकून है बेहोशी में, वो होश किसी के नाम करके तो देखे.
--' अतुल '