ग़ज़ल
हर किसी से यहाँ धोखा ही मैंने खाया है,
कौन अपना है और कौन यहाँ पराया है.
ले चुके है साँसे अपने हिस्से की लगता है,
अब तो हर सांस का लगता नुझे किराया है.
मेरे आंसू यहाँ किसीको नहीं भिगो सकते,
बस महफिल में एक मुद्दा नया उठाया है.
कुछ पहले इसी भीड़ ने पैगम्बर मुझे कहा था,
कुछ पहले ही इन्होंने शैतान मुझे बताया है.
तेरे आगे सब झुकाते हैं मैं भी झुका देता हूँ,
पर सजदे में नहीं मैंने तो बेबसी में सर झुकाया है.
--- ' अतुल '
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अच्छी गजल .............बहुत सुन्दर्
आप ने जो लिखा उसका भाव मुझे बहुत अच्छा लगा
आपका स्वागत है तरही मुशायरे में भाग लेने के लिए सुबीर जी के ब्लॉग सुबीर संवाद सेवा पर
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वीनस केसरी