ग़ज़ल
मेरे चाहनेवाले महबूब मेरे कई इल्जाम लगते होंगे,
मेरी आँखों की नमी से वो मेरे अश्क चुराते होंगे.
बेकरारी के ये सबक सीख के भी बाज़ नहीं आते,
सूखी बस्ती है अरमानों की, वो दिलों में आग लगाते होंगे.
मेरी बेवफाई को कभी इतना, न समझा न तराशा गया,
वो अपने जिस्म पर मेरे दिए ज़ख्म यूँ सजाते होंगे.
मेरे जीते मेरी ज़िन्दगी के लिए लड़ते थे इस तरह,
मेरे मरने पे मेरी मौत का फरमान सुनते होंगे.
कफ़न तैयार होगा पर कब्र में सांस मेरी बाकी होगी,
वो रो रो कर मेरी साँसों की आवाजों को दबाते होंगे.
-- ' अतुल '