ये कौन घाट है



बुझती नहीं न  थमती ये  कैसी प्यास है,
ये कौन सा पानी है, ये कौन घाट है |

तूने क्या सोचा बन्दे, कब तक रहेगा बंधन, 
कब तकेंगी अखियाँ, कब तक रहेगा सावन|
थामा क्या तूने दामन, छूटा  किसका हाथ है,
ये कौन सा पानी है, ये कौन घाट है |

रहने दे झूठे किस्से, मुझको क्या झुठलाता है,
मैं हूँ आइना तेरा, मुझे क्या शर्माता है |
बुझी सुबह है बाहर. अन्दर सुलगती रात है,
ये कौन सा पानी है, ये कौन घाट है |

दिल है बहल जायेगा, कोई फिर से मिल जायेगा
घाव ही है भर जायेगा, ज़ख्म हर इक सिल जायेगा|
समझे है प्रेम तू पर पल दो पल का साथ है,
ये कौन सा पानी है, ये कौन घाट है |

राही सोचे घाट है, कुछ  देर रुक जाना है,
पानी बहने को चला है, लेहेरों को टकराना है|
बीता जो पल तो संग क्या, बीती हर बात है,
भूल जा रही ये कि, कौन सा ये घाट है|

- 'अतुल'

दुश्मनी निभाने लगी

इश्क की हर अदा, मुझको लुभाने लगी,
क्या कहें दिल्लगी दुश्मनी निभाने लगी |

बचाया हवाओं से तो, चिरागों को  हमने,
क्या करे जो लौ ही हमें जलाने लगी |

सोचा था मिटादेंगी, दूरियां  हसरतों को,
हर इक दूरी तुमसे ये बेकरारी बढाने लगी |

बेतहाशा फरेब तुमने, कई किये हों  मगर, 
तुम्हारी आँखें हमें सब सच बताने लगी ।

मैं तुम्हें नशे के, हर घूट में पीता रहा ,
तुम मुझे आंसू की हर बूँद में बहाने लगी ।

तेरे इत्र की खुशबू मेरे कुरते पे सजती थी,
वही खुशबु तुम मेरी कब्र पे सजाने लगी ।

'अतुल'

जाने का इंतज़ार

अब तो हवाओं में भी इज़हार है ,
क्यूँ  हमें जाने का इंतज़ार है ।

जिस वक़्त को दिल तकता था,
दिल उसी वक़्त का पहरेदार है ।

टूटी सुलगी रातें बड़ी लम्बी थी,
बड़ा छोटा सा ये इकरार है ।

हर ज़ख्म ने नफरत न की तुमसे,
ज़ख्मों को मरहम पे एतबार है ।

छोड़ कर अनकही सुन ले अनसुनी,
चाहना आसान है कहना दुश्वार है ।

बहुत छोटी है साँसों की ये लड़ी ,
जीने दे ये ज़िन्दगी बस एक बार है ।

'अतुल'

होश

होश आ ले तो सम्हल जायेंगे,
लोग बिछड़ेंगे नहीं बदल जायेंगे |

वक़्त हमको इतना तो सिखा देगा,
ठोकर आज की हम कल खायेंगे |

याद आएंगे हम किसी बहाने से,
किसी बहाने आंच देना जल जेयेंगे |

मेरी बेहयाई मेरी ताकत नहीं है,
मिलेंगी जो नज़रें तो गल जायेंगे |

दिल में बसा के रखने का क्या फायदा,
हम जो ज़िन्दगी से निकल जायेंगे|

' अतुल '



Blog Flux

Poetry blogs