बुझती नहीं न थमती ये कैसी प्यास है,
ये कौन सा पानी है, ये कौन घाट है |
तूने क्या सोचा बन्दे, कब तक रहेगा बंधन,
कब तकेंगी अखियाँ, कब तक रहेगा सावन|
थामा क्या तूने दामन, छूटा किसका हाथ है,
ये कौन सा पानी है, ये कौन घाट है |
रहने दे झूठे किस्से, मुझको क्या झुठलाता है,
मैं हूँ आइना तेरा, मुझे क्या शर्माता है |
बुझी सुबह है बाहर. अन्दर सुलगती रात है,
ये कौन सा पानी है, ये कौन घाट है |
दिल है बहल जायेगा, कोई फिर से मिल जायेगा
घाव ही है भर जायेगा, ज़ख्म हर इक सिल जायेगा|
समझे है प्रेम तू पर पल दो पल का साथ है,
ये कौन सा पानी है, ये कौन घाट है |
राही सोचे घाट है, कुछ देर रुक जाना है,
पानी बहने को चला है, लेहेरों को टकराना है|
बीता जो पल तो संग क्या, बीती हर बात है,
भूल जा रही ये कि, कौन सा ये घाट है|
- 'अतुल'